श्री विष्णु जी की आरती (Shri Vishnu ji ki Aarti)

 श्री विष्णु जी की आरती (Shri Vishnu ji ki Aarti)


सृष्टि के ताने-बाने के बीच, जहां ब्रह्मांड अपना जटिल नृत्य बुनता है, वहां एक कालातीत संरक्षक खड़े हैं - भगवान विष्णु जी, दुनिया के संरक्षक। जब गुरुवार के पवित्र दिन पर उनकी दिव्य मूर्ति के सामने घी के दीपक की अलौकिक चमक टिमटिमाती है, तो यह आपके घर में समृद्धि और खुशी का आगमन करती है। जैसे ही आप अपनी आंखें बंद करते हैं और ध्यान में डूब जाते हैं, श्री हरि विष्णु जी की दयालु उपस्थिति आपके घर में संतुष्टि और शांति प्रदान करती है, जबकि प्रचुरता की अग्रदूत मां लक्ष्मी जी आपके जीवन को सुशोभित करती हैं और गरीबी की छाया को दूर करती हैं। इस पवित्र अनुष्ठान में, आपकी आत्मा ब्रह्मांडीय सद्भाव के साथ संरेखित होती है, और भगवान विष्णु अपनी असीम करुणा से प्रसन्न होते हैं।


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|| विष्णु आरती || 

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ओम जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ओम जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं मैं किसकी। स्वामी शरण गहूं मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता। स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ओम जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥ ओम जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ओम जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, संतन की सेवा॥ ओम जय जगदीश हरे।

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा। स्वामी सब कुछ है तेरा | 
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ओम जय जगदीश हरे।


श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥ ओम जय जगदीश हरे।

॥ इति समाप्तं ॥


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