हिन्दू धर्म के 10 ऐसे नियम जिनका हर हिन्दू को करना चाहिए मरते दम तक पालन

प्रिय दोस्तों, सनातन धर्म जिसे हिंदू धर्म के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया का सबसे पुराना धर्म है।  यह सनातन धर्म ही है जिसमें कई अलग-अलग परंपराएं, दर्शन और ग्रंथ हैं। हिंदुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है बल्कि इसे एक सफल जीवन जीने के तरीके के तौर पर भी देखा जा सकता है।

जब बात जीवन जीने की आती है तब इसके लिए कुछ नियम भी बताये जाते हैं। अधिकतर हिंदू इन नियमों पर चलते हैं या नहीं यह जानना प्रत्येक हिंदू का कर्तव्य होना चाहिए। सनातन धर्म में भक्ति, कर्म, ज्ञान और वैराग्य के सिद्धांत की मान्यता है। सनातन धर्म का मतलब है अनादि या अनंत। यह धर्म जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है जैसे धार्मिक अनुष्ठान, संगीत, कला, संस्कृति, विज्ञान और दर्शन। इसका मूल उद्देश्य मनुष्य को धार्मिक आध्यात्मिक और आदर्श जीवन जीने में मदद करना है। 






सनातन धर्म विविधता में एकता को स्वीकार करता है और सभी धर्मों और संप्रदायों को सम्मान देता है। हमें हमारे ऋषियों मुनियों ने ज्ञान योग भक्ति योग व योग का उपहार दिया है जिसके बल से हम हमेशा धर्म से जुड़े रहते हैं। 

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आइये जानते हैं कि ऐसे कौन से 10 नियम हैं जिनका पालन हिंदुओं को करना चाहिए। 

पहला नियम - सनातन धर्म प्रचार करना 


यह पहला नियम है जो हर हिन्दू को मानना चाहिए। हर हिन्दू को हर संभव तरीके से सनातन धर्म का प्रचार करना चाहिए या प्रचार करने वाले लोगों या संस्थाओं की मदद करनी चाहिए। एक हिन्दू यह काम तभी कर पायेगा जब उसे हिन्दू धर्म की अच्छी जानकारी होगी इसलिए हर हिंदू को धर्म शास्त्रों को पढ़ना और समझना जरूरी है। हिंदू धर्म को समझकर ही उसका प्रचार और प्रसार किया जा सकता है। जब आपको धर्म का सही ज्ञान होगा तभी उस ज्ञान को दूसरे को बताना चाहिए। आज स्थिति यह है कि बहुत सारे हिंदू ऐसे भी हैं जिन्हें अपने ही धर्म के बारे में कुछ भी नहीं पता है। अपने धर्म को जानने के लिए भगवा वस्त्र धारण करने या सन्यासी होने की जरूरत नहीं है। आप बिना साधु, सन्यासी या बाबा बने भी स्वयं ही पढ़ कर धर्म को जान सकते हैं और इसका प्रचार कर सकते हैं। 

चलिए हम अपने धर्म के बारे में आपको कुछ मूलभूत ज्ञान देते हैं। मित्रों धर्म का आधार है चार ग्रंथ - वेद उपनिषद स्मृति और गीता; चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास; चार पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष; चार धाम - जगन्नाथ, द्वारिका, बद्रीनाथ और रामेश्वरम; चार मास - सौर मास, चंद्रमास, नक्षत्र मास और सावन मास; चातुर्मास - श्रावण भाद्रपद आश्विन और कार्तिक; चार पीठ - ज्योतिर्पीठ, गोवर्धनपीठ, शारदापीठ और श्रृंगेरीपीठ; चार पद - ब्रह्मपद, रुद्रपद, विष्णुपद और परमपद (सिद्धपद) आदि को जानना जरूरी है। इसके आलावा चार संप्रदाय - वैष्णव, शैव, शाक्त और स्मृति संत के बारे में भी जानना जरुरी है।

आपको नियमित रूप से शास्त्रों को पढ़ना और घर पर बड़े बुजुर्गों और सभी लोगों के साथ बातचीत या धार्मिक चर्चा को महत्त्व देना चाहिए। इसमें बच्चों और युवाओं को जरूर शामिल करें ताकि उनके मन में अपने धर्म के प्रति रूचि और ज्ञान में वृद्धि हो सके। 

दूसरा नियम - तीर्थ यात्रा करना 


हिन्दू धर्म में तीर्थों का बड़ा महत्त्व है और तीर्थ यात्रा का बहुत पुण्य माना जाता है। अयोध्या, काशी, मथुरा, चार धाम और कैलाश जैसे पवित्र स्थानों की बड़ी महिमा बताई गयी है। भारतीय धर्म ग्रंथों में बद्रीनाथ, द्वारका, जगन्नाथ पुरी और रामेश्वरम को चार धाम के रूप में जाना जाता है। इन चारों धामों की यात्रा को ही ‘चार धाम यात्रा’ कहा जाता है। तीर्थ से ही वैराग्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।  तीर्थ से विचार और अनुभवों को विस्तार मिलता है और जीवन को समझने में लाभ मिलता है। बच्चों को पवित्र स्थलों एवं मंदिरों की तीर्थ यात्रा का महत्व बताना चाहिए इसलिए तीर्थ यात्रा पर जरूर जाएं। 

तीसरा नियम - व्रत रखना 


हिंदू धर्म में व्रत रखने का महत्व इस वजह से है कि यह धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ वैज्ञानिक दृष्टि से भी फायदेमंद होता है। व्रत रखने से मन और शरीर की शुद्धि होती है और आध्यात्मिक विकास होता है। व्रत रखने से भगवान के प्रति श्रद्धा और भक्ति बढ़ती है। हिन्दू मान्यताओं में कई प्रकार के उपवास बताये गए हैं - प्रातः उपवास, अधोपवास, एकाहारोपवास, रसोपवास, फलोपवास, दुग्धोपवास, तक्रोपवास, पूर्णोपवास, साप्ताहिक उपवास, लघु उपवास, कठोर उपवास, टूटे उपवास, दीर्घ उपवास। व्रत रखने के अनेक फायदे होते हैं जैसे इससे मानसिक शांति मिलती है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, पेट और पाचन तंत्र से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं, मोटापा कम होता है, डिप्रेशन जैसी समस्याओं से राहत मिलती है, शरीर में नई प्रतिरोधक कोशिकाएं बनती हैं, शरीर की सफाई होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और अनुशासन बढ़ता है। 

चौथा नियम - सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है 


ईश्वर ही सत्य है ब्रह्मा ही सत्य है सत्य ही ब्रह्मा है वही सर्वोच्च शक्ति है। 
वेद शास्त्र और पुराणों में कहा गया है कि सत्य के समान दूसरा धर्म नहीं है। प्रार्थना पूजा ध्यान और आरती आदि सभी उसी के प्रति हैं। देवी देवता त्रिदेव यक्ष किन्नर गंधर्व वानर आदि सभी उसी का ध्यान करते हैं इसलिए सिर्फ उस एक को ही सर्वोच्च सत्ता मानना धर्म का नियम है। हिंदू धर्म के मुताबिक ईश्वर परमेश्वर एक ही शक्ति के नाम हैं। वेद उपनिषद और गीता में उसी परम तत्व की चर्चा की गई है ईश्वर को भगवान परमात्मा प्रभु परम पुरुष या स्वामी भी कहा जाता है। उसी के प्रति समर्पित ईश्वर प्राणधारा का बेहद जरूरी नियम है। जो व्यक्ति इस नियम का पालन नहीं करता वह भटका हुआ है। ईश्वर निराकार और अजन्मा है। अप्राकृतिक या घोर दुख उसके प्रति अपनी आस्था को बढ़ाने के साधन हैं अतः दुखों से घबराएं नहीं। इससे आपके भीतर पांचों इंद्रियों में एकजुटता आएगी और आपका आत्मविश्वास बढ़ता जाएगा जिससे लक्ष्य को भेदने की ताकत बढ़ेगी। वे लोग जो अपने आस्था बदलते रहते हैं भीतर से कमजोर होते जाते हैं। 

पांचवें नियम - 16 संस्कारों का पालन करना  


हिन्दू धर्म में जरूरी संस्कारों के प्रमुख प्रकार 16 बताए गए हैं जिनका पालन करना हर हिंदू का कर्तव्य है। इन संस्कारों के नाम कुछ इस प्रकार है - गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जात कर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्रास, चूड़ाकर्म (मुंडन), कर्ण वेधन, उपनयन (यज्ञोपवीत), वेदारम्भ, केशांत, समावर्तन, विवाह, अंत्येष्टि और श्राद्ध। 
हर हिंदू को उक्त संस्कार को अच्छे से नियम पूर्वक करना चाहिए क्योंकि ये हमारे सभ्य और हिंदू होने की निशानी है। संस्कार हमें सभ्य बनाते हैं, इनसे ही हमारी पहचान है। संस्कार से जीवन में पवित्रता सुख शांति और समृद्धि का विकास होता है। संस्कार विरुद्ध कर्म कभी नहीं करना चाहिए। संस्कार विरुद्ध कर्म करने वाले व्यक्ति जंगली मानव की निशानी है। 

छठवाँ नियम - दान देना 


मित्रों वेदों में तीन प्रकार के दाता कहे गए हैं - उत्तम दान, मध्यम दान और निकृष्ट दान। धर्म की उन्नति रूपी सत्य विद्या के लिए जो देता है वह उत्तम दान कहलाता है। कीर्ति या स्वार्थ के लिए जो दान देता है तो वह मध्यम दान कहलाता है। जो भोग विलास वेश्या मदिरा आदि के लिए दान देता है वह निकृष्ट दान कहलाता है। पुराणों में अनेक दानों का उल्लेख मिलता है जिसमें अन्नदान विद्यादान अभयदान और धनदान को ही श्रेष्ठ माना गया है और यही पुण्य भी है। 

सातवाँ नियम - यज्ञ और कर्म 


वेदों के अनुसार यज्ञ पांच प्रकार के होते हैं - ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ, वैश्वदेव यज्ञ और अतिथि यज्ञ। इन पांच यज्ञों के बारे में पुराणों और अन्य ग्रंथों में विस्तार से दिया गया है। ईश्वर गुरु माता और पिता के प्रति समर्पित भाव रखकर नित्य संध्या वंदन स्वाध्याय तथा वेद पाठ करना ब्रह्म यज्ञ कहलाता है। देव यज्ञ सत्संग तथा अग्निहोत्र कर्म से संपन्न होता है। पितृ यज्ञ को पुराणों में श्राद्ध कर्म कहा गया है। वेदानुसार यह श्राद्ध तर्पण हमारे पूर्वजों माता-पिता और आचार्य के प्रति सम्मान का भाव है। सभी प्राणियों तथा वृक्षों के प्रति करुणा और कर्तव्य समझना उन्हें अन्नजल देना ही भूत यज्ञ या वैश्वदेव यज्ञ कहलाता है। अपंग महिला विद्यार्थी सन्यासी चिकित्सक और धर्म के रक्षकों की सेवा सहायता करना ही अतिथि यज्ञ है। 

आठवां नियम - संध्योपासन अर्थात संध्या वंदन या उपासना


संध्या वंदन प्रतिदिन करना जरूरी है। संध्या वंदन के दो तरीके हैं - प्रार्थना और ध्यान। मनमानी पूजा करना आरती और यज्ञादि करना धर्म के नियमों के विरुद्ध है। प्रत्येक हिन्दू को प्रातः और संध्या वंदन प्रतिदिन करना अनिवार्य है। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है तो कम से कम प्रत्येक गुरुवार को निश्चित ही यह कर्म करना जरूरी है। संध्या वंदन करना सभी का कर्तव्य है। प्रतिदिन संध्या वंदन करने से हमारे भीतर की नकारात्मकता निकल जाती है और हमारे जीवन में सकारात्मकता आती है। हमारे साथ सदा शुभ होता है और हर काम में लाभ होता रहता है। इससे जीवन में किसी प्रकार का भी दुख और दर्द नहीं रहता है। हालांकि हमें इन लाभों के लालच में संध्या वंदन नहीं करना चाहिए बल्कि ईश्वर को आदर सम्मान देने और उनसे प्रार्थना करने के लिए संध्या वंदन करना चाहिए।  

नौवाँ नियम - पर्वों को पूरी श्रद्धा से मनाना 


हिन्दू पर्व त्यौहार सिर्फ मौज मस्ती के साधन नहीं हैं बल्कि इनके पीछे गहरे आध्यात्मिक अर्थ छिपे हैं इसलिए मनमाने तरीके से त्यौहारों को मनाने से धर्म की हानि होती है। त्योहारों को इस तरह से नहीं मानना चाहिए जो कि धर्मशास्त्र में लिखा नहीं है। शास्त्रों में बताई गयी विधि का पालन करते हुए ही किसी पर्व को मनाना चाहिए। पर्व मनाते समय पूरी श्रद्धा दिखानी चाहिए। कोई भी व्रत अगर आप रखते हैं तो आपको इनसे जुडी सावधानियां भी बरतनी चाहिए। पुण्य काल में कठोर या बुरा बोलना वृक्ष काटना गाय को मारना व मैथुन या कामविषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए। 

दसवाँ नियम - सेवा करना


हिंदू धर्म में सभी कर्तव्यों में सेवा को श्रेष्ट बताया गया है। सेवा करने का बड़ा महत्त्व है। यही अतिथि यज्ञ है। स्वजनों अशक्त गरीबों महिला बच्चों धर्म रक्षकों बूढ़ों और मातृभूमि की सेवा करना पुण्य है। सेवा से सभी तरह के संकट दूर होते हैं और इसी से मोक्ष के मार्ग में सरलता आती है। सेवा ही सबसे बड़ी पवित्रता है। 

इन दस नियमों के अलावा भी कई छोटी छोटी बातें हैं जिनका ध्यान रखा जाना चाहिए।

घर में पूजा के कमरे का स्थान सबसे अहम होता है इस स्थान से ही हमारे मन और मस्तिष्क में शांति मिलती है तो यह स्थान अच्छा होना जरूरी है आपकी आय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि घर में पूजा घर कहाँ है | 

वास्तु की नजर से पूजा घर, 
घर के बाहर एक अलग स्थान देवता के लिए रखा जाता था जिसे परिवार का मंदिर कहते थे, बदलते दौर के साथ एकल परिवार का चलन बढ़ा है इसलिए पूजा का कमरा घर के भीतर ही बनाया जाने लगा है| 

वास्तु के अनुसार, भगवान के लिए ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व की दिशा श्रेष्ठ रहती है, इस दिशा में पूजा घर स्थापित करें | 

पूजा घर में यह ना रखें - खंडित मूर्ति, विषम संख्या में मूर्ति, रौद्र रूप की तस्वीर, एक से ज्यादा शंख, कटी फटी धार्मिक पुस्तकें, माचिस, निर्माल्य, टूटे हुए चावल, पूर्वजों की तस्वीर, साधु संतों के चित्र या मूर्ति ना रखें | पूजा घर के ऊपर या नीचे की मंजिल पर शौचालय या रसोई घर नहीं होना चाहिए  और ना ही इनसे सटा हुआ | सीढ़ियों के नीचे पूजा का कमरा बिल्कुल नहीं बनवाना चाहिए | यह हमेशा ग्राउंड फ्लोर पर होना चाहिए तहखाने में नहीं | 

पूजा का कमरा खुला और बड़ा बनवाना चाहिए | शंख, गरुड़, घंटी, कौड़ी, चंदन, तांबे का सिक्का, आचमन पात्री, शालिग्राम, शिवलिंग, सुगंधी, पीला वस्त्र, जप माला, जनेऊ, पूजा की छोटी सुपारी, गंगाजल और पानी का लोटा पूजा घर में जरूर होना चाहिए |

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